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PARIYATAN

कला और संस्कृति का अनोखा संगम है किंगडम ऑफ ड्रीम्स





अगर आप एक दिन में और एक ही छत के नीचे पूरा भारत घूमना चाहते हैं तो किंगडम ऑफ ड्रीम्स जाएं। यहां आपको भारत की सभ्यता, संस्कृति, खान-पान और हस्तकलाओं का अद्भुत सम्मिलन देखने को मिलेगा, जो भारत की अब तक की उपलब्धि को बयां करता है। भारत एक ऐतिहासिक देश है और यहां के हर राज्य की अपनी खासियत है। कहीं का खान-पान मशहूर है तो कहीं का हस्तशिल्प लोकप्रिय है तो कहीं की शिल्पकलाएं लोगों को अपनी ओर लुभाती हैं। पूरे भारत की अनोखी जगहों को एक साथ घूमना आसान नही है। कलाप्रेमियों के लिए ऐसी ही एक जगह किंगडम ऑफ ड्रीम्स है, जो दिल्ली के नजदीक गुडग़ांव में स्थित है। 29 जनवरी, 2010 में स्थापित किंगडम ऑफ ड्रीम्स लीशर वेली पार्क के पास ही स्थित है। इससे कई बॉलीवुड स्टार भी जुड़े हुए हैं। किंगडम ऑफ ड्रीम्स एक टूरिस्ट प्लेस है, जो सिर्फ भारतीयों को ही नही बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी खूब आकर्षित करता है। यहां भारत की परंपरागत और आधुनिक संस्कृति को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यहां आयोजित होने वाले संगीत समारोह, कार्निवाल, नाटक और स्ट्रीट डांस काफी रोमांचक होते हैं। इसके अलावा शिल्पकलाओं का आपको यहां अनोखा रूप देखने को मिलेता है। यहां के अनेक कार्यक्रम लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं।

कल्चर गली: किंगडम ऑफ ड्रीम्स के मुख्य आकर्षणों में से कल्चर गली भी एक है। कल्चर गली में क्वेंट टैवर्न, कैरेला बैकवॉटर्स, मुंबई का राजाबाई क्लॉक टॉवर और लखनऊ दरबार की झलक देखने को मिलेगी। फूड लवर्स के लिए भी यह जगह काफी अच्छी है क्योंकि वे यहां 14 राज्यों के अलग-अलग थीम बेस्ड रेस्टोरेंट में स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं। यहां का स्काईडोम भी देखने लायक है। कल्चर गली में विभिन्न राज्यों की हस्तशिल्प के अलावा संगीत समारोह, कार्निवल और कल्चरल डांस भी प्रस्तुत किये जाते हैं। कल्चर गली में शॉपिंग के भी विभिन्न विकल्प उपलब्ध हैं। यहां पर ज्वैलरी की भी अच्छी शॉपिंग की जा सकती है। यहां पर आपको क्राफ्ट, एथनिक ज्वैलरी स्टोर, होम डेकोर स्टोर और एथनिक ज्वैलरी स्टोर मिलेंगे।

नौटंकी महल: अगर आप बॉलीवुड को जीवंत रूप में देखना चाहते हैं तो किंगडम ऑफ डीम्स का नौटंकी महल जरूर देखें। यहां बॉलीवुड गाने, शो और थिएटर का आयोजन किया जाता है। नौटंकी महल में आपको तीन तरह के रोमांचक शो देखने को मिलेंगे। पहला झंगूरा, दूसरा झुमरू और तीसरा अभिमन्यू। झंगूरा शो एक एक्शन और म्यूजिकल कॉमेडी शो है, जो दि जिह्रश्वसी प्रिंस के किरदार पर आधारित है। झुमरू भी यहां का काफी मशहूर शो है। ये शो फिल्मी अभिनेता किशोर कुमार की याद में शुरू हुआ था। यह एक म्यूजिकल शो है और इसमें आपको 19 रेट्रो सॉन्ग्स और प्ले देखने को मिलेगा। अभिमन्यू शो, अभिमन्यू के किरदार पर आधारित है। सृजनात्मकता और तकनीक का मिश्रण यहां एक अलग ही एहसास दिलाता है। नौटंकी महल में स्वचालित छड़, हाइड्रॉलिक स्टेज और मैट्रिक्स साउंड सिस्टम से आप रोमांचित हुए बिन रह नही पाएंगे। महाराजा शराबघर और नौटंकी महल में यहां आने वालों के लिए विशेष व्यवस्था भी की जाती है। इंटरवल के दौरान उन्हें चाय-नाश्ता भी दिया जाता है।

माई डेस्टिनेशन: माई डेस्टिनेशन को शोशा के नाम से भी जाना जाता हैं। यहां अलग-अलग बैकग्राउंड के साथ विभिन्न थीम पर प्ले आयोजित होते हैं। थियेटर में आपको अत्याधुनिक तकनीक के साथ रामलीला और कृष्णलीला जैसी पौराणिक कहानियों का प्रदर्शन देखने को मिलेगा। यहां पूरे धूमधाम के साथ मॉक वेडिंग का भी आयोजन किया जाता है। बेहतरीन पहनावे और गजब की नृत्यकला के भारतीय महाकाव्यों को यहां शानदार ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। यहां 350 लोग एक साथ बैठकर इस शो को देख सकते हैं।

आईआईएफए बज: आईआईएफए एक लॉन्ज है, जो बॉलीवुड स्टाइल में बना है। यहां आपको वैसी ही स्टाइल में प्रॉप्स,साज-सज्जा, स्तंभ, संगीत और रिकॉर्ड देखने को मिलेंगे। यहां के स्पेशल इफैक्ट्स देखने लायक है। यहां एक बॉलीवुड आधारित रेस्ट्रो बार है, जहां आप मूवी कॉस्ट्यूम, पोस्टर, आईआईएफए अवॉर्ड और दूसरे बॉलीवुड ममेंटो देख सकते हैं।

बच्चों के लिए: यहां पर बच्चों के लिए भी काफी कुछ है। बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार की राइड्स और वीकेंड्स परफॉर्मेंस आयोजित की जाती हैं। बच्चों को पोको-लोको एंटरटेंनमेंट शो काफी लोकप्रिय है। इसमें पोको-लोको के नाम से दो किरदार हैं।

खर्च: यहां पर गोल्ड, प्लेटिनम, सिल्वर, इकोनॉमी, ब्रोन्ज और वेल्यू के नाम अलग-अलग टिकट प्लान उपलब्ध हैं। इन सभी प्लान की एंट्री फी भी विभिन्न है। इसके अलावा वीक डेज और वीकेंड्स के हिसाब से भी अलग-अलग एंट्री फी है, जिसका पूरा विवरण इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध है।

समय: किंगडम ऑफ ड्रीम्स घूमने के लिए एक पूरा दिन चाहिए होता है। तभी आप यहां का पूरा मजा उठा सकते हैं। शाम की लाइटिंग और म्यूजिक की चकाचौंध देखने लायक है।

निहारिका जायसवाल----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इन अनुभवों के बिना अधूरी है आपकी राजस्थान यात्रा
राजस्थान में एक अलग ही आकर्षण है, जो पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर खींचता है। सभी अपने छुट्टियों के दिनों में एक बार राजस्थान की यात्रा करना पसंद करते ही हैं। राजस्थान ने अपनी एक अलग और अनोखी छाप पर्यटकों के बीच छोड़ी है, जो इसे भारत के टॉप पर्यटक स्थलों की सूचि में शामिल करता है। आप सोच रहे होंगे आखिर ऐसी क्या दिलचस्प बात है राजस्थान में? ऐसा क्या छुपा हुआ आकर्षण है जो लोगों को अपनी ओर आने को लालायित करता है? कौन सी ऐसी चीज़ है जो इसे बाकि पर्यटक स्थलों से अलग बनाती है? तो चलिए ऐसे ही अनुभव को लिखित में जानने के लिए चलते हैं राजस्थान की रंगीन, शाही और देहाती यात्रा पर, जिन्हें जानकर आप अपने-आपको इस रंगीन यात्रा में जाने से रोक नहीं पाएंगे।

रंगीन पगड़ियों का अंदाज़: राजस्थानी पगड़ियां अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से आकार में भिन्न होती हैं| कई पगड़ियों का जाति और सामाजिक वर्ग से भी सम्बन्ध है| तो अगली बार आप भी इन पगड़ियों को पहनकर इनका अनुभव लेना मत भूलियेगा, जो यहाँ की परंपरा की शान है।

किलों से अद्भुत दृश्य: राजस्थान के राजसी किले यहाँ के शाही अतीत की परछाई हैं। आप जब भी कभी इन राजसी किलों की यात्रा पर जाएँ, इनके दुर्ग पर चढ़कर राजस्थान के शहरों और सूर्यास्त के अद्भुत नज़ारे का दीदार करना न भूलें।

रंगीन ग्रामीण क्षेत्र: राजस्थान के गाँव 'चमत्कारों के ख़ज़ाने हैं', जहाँ आपको विभिन्न परम्पराओं, सांस्कृतिक प्रथाओं, कला, रूप, सदियों की कला को आज भी जिवंत रखते कारीगर और ग्रामीण रहन-सहन का सुखमय अनुभव होगा।

राजसी महलों में शाही सुख का अनुभव: राजस्थान के आलीशान महल 'राजाओं की भूमि' की पूर्ण याद दिलाते हैं। इनमें से कुछ अब हेरिटेज होटल में तब्दील हो चुके हैं, जो इन सदियों पुराने महलों में राजसी सुख अनुभव लेने का मौका देते हैं।

व्यंजनों के लाजवाब ज़ायके का मज़ा: राजस्थानी व्यंजन कड़ी, गट्टे का पुलाव, मिर्ची बड़ा, दाल चावल कुट्ट, मावा कचौरी, दाल-बाटी-चूरमा, केर-सांगरी और मिठाई आदि ऐसे राजस्थानी व्यंजन हैं, जिनका स्वाद चखे बिना आपकी राजस्थान की यात्रा अधूरी ही रह जाएगी।

रेगिस्तान में तारों को निहारना: रेगिस्तान ही राजस्थान की असली पहचान हैं और यहाँ ठंडे रेगिस्तान में कैंपिंग कर सुबह रेगिस्तान के टीलों से सूरज निकलना, सूर्यास्त देखना आपकी ज़िन्दगी के सबसे और आँखों के लिए सबसे अच्छा अनुभव होगा। मुलायम रेत पर सोते हुए, लोक गीतों की मधुर गुंजार कानों में पड़ते हुए खुले आसमान में तारों को चमकते देखना किसी सपने से कम नही होगा।

ऊँट की सवारी:
ऊँट की पीठ पर बैठकर रेगिस्तान की सैर करना एक उत्साहित अनुभव होता है। आप जैसलमेर, पुष्कर और बीकानेर जैसी जगहों पर ऊँट की सवारी के भरपूर मज़े ले सकते हैं।

राजस्थान को यादों में कैद करना: राजस्थान में भव्य किले, राजसी महल, जीवंत क्षेत्र, लज़ीज़ व्यंजन और क्या कुछ नही है? राजस्थान की यात्रा आपके साथ आपके कैमरे की भी एक सुखद यात्रा है|

ऐतिहासिक बावड़ियाँ: आभानेरी की चाँद बावली और बूंदी की रानीजी की बावली राजस्थान की प्रसिद्द बावलियां हैं जो कला, वास्तुकला और पानी के भंडारण प्रणालियों के इतिहास की स्मृतिचिन्ह हैं।

मेले और त्यौहार की भव्यता: अगर आपको राजस्थान की असली चमक के दर्शन करने हैं तो यहाँ लगने वाले मेलों में ज़रूर हिस्सा लें। राजस्थान के ऐसे ही कुछ दिलचस्प मेले हैं, पुष्कर मेला, जैसलमेर का मरुस्थलीय मेला, माउंट आबू का ग्रीष्म मेला, जोधपुर का मारवाड़ मेला और जयपुर का गणगौर पर्व।

खरीददारी: रंग-बिरंगी शॉपिंग के लिए राजस्थान से अच्छी जगह और कहाँ हो सकती है? मिटटी के बर्तन, रंग-बिरंगे चित्र, कांच के काम किये गए कपड़े जैसे कुर्ते, साड़ी, कठपुतलियां आदि कुछ खास चीजें हैं राजस्थान में शॉपिंग करने के लिए।

लोकनृत्य: राजस्थान में एक समृद्ध लोक संस्कृति बसी हुई है इसलिए यहाँ लोक नृत्य-संगीत राजस्थान पर्यटन के अभिन्न अंग हैं। यहाँ आप जैसलमेर के कालबेलिया नृत्य, उदयपुर के घूमर नृत्य, कनैया गीत आदि जैसे लोक नृत्य-संगीत के मज़े ले सकते हैं।

कठपुतली का नृत्य: कठपुतली नृत्य राजस्थान की खासियत है। यहाँ के कठपुतली थिएटर सबसे दिलचस्प लोककला परंपराओं में से एक हैं।

ओपन आर्ट गैलरी: ऐतिहासिक क्षेत्र शेखावाटी अपनी खूबसूरत हवेलियों और उनमें की गई भित्ति चित्रों के लिए जाने जाते हैं। इसे राजस्थान का ओपन आर्ट गैलरी भी कहा जाता है।

मंदिरों की भव्यता: समृद्ध विरासत वास्तुकला के साथ यहाँ के मंदिरों और धार्मिक स्थलों में राणकपुर, दिलवाड़ा, गलताजी, रहस्यमयी बुलेट बाबा मंदिर और अजमेर शरीफ दरगाह प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक हैं।

वन्यजीवों से रूबरू: राजस्थान यात्रा में वन्यजीवों से रूबरू होने के लिए रणथम्भौर और सरिस्का टाइगर रिज़र्व प्रसिद्ध सफारियों में से एक हैं।

किलों की रहस्यमयी यात्रा: राजस्थान दो भूतहा क्षेत्रों का घर भी है। अगर आप साहसिक और रहस्यमयी यात्रा के शौक़ीन हैं तो भानगढ़ किला और कुलधरा गाँव की सैर पर ज़रूर जाएँ।

अनोखे एडवेंचर:
राजस्थान में आप कई सारे साहसिक खेलों के मज़े भी ले सकते हैं, जैसे दून बैशिंग, हॉट एयर बलून राइड, पैराग्लाइडिंग, ट्रैकिंग, ज़िपलिंग, बोटिंग, कैंपिंग आदि।

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वीकेंड की बोरियत दूर करने का बेहतर विकल्प है बोरडी

शापिंग करने का मन मुम्‍बई की गलियों और लोकल मार्केट में है लेकिन समुद्र का किनारा शांत और मन को हल्‍का कर देने वाला चाहिए तो आपको घूमने के लिए बोरडी जाना चाहिए। बोरडी, महाराष्‍ट्र राज्‍य के ठाणे जिले में एक छोटे से शहर दहानू से लगभग १७ किमी. की दूरी पर स्थित है। इस जगह को 'समुंदर के किनारे का पुरवा' कहा जाता है, यह बेहद शांत समुद्र तट है। मुम्‍बई से १४५ किमी. दूर स्थित यह शहर बेहद खूबसूरत है। यहां का शान्‍त समुद्र तट कालापन लिए हुए हल्‍का चिपचिपा है जिसके किनारों पर चीकू के ढ़ेर सारे पेड़ है। यहां का पानी का स्‍तर कभी ज्‍यादा नही बढ़ता इसलिए यहां पानी के गेम्‍स खेलना सुरक्षित माना जाता है। दूसरी तरफ बोरडी में पारसी समुदाय के कई प्रसिद्ध धार्मिक स्‍थल भी हैं। साथ ही यहां के मल्लिनाथ तीर्थ और कोसबाद मंदिर को जैन धर्म का तीर्थ स्‍थल माना जाता है। यह धार्मिक स्‍थल भगवान ऋषभदेव को समर्पित है। यहां पास में वृंदावन स्‍टूडियो है, जहां कई धार्मिक और ऐतिहासिक धारावाहिकों जैसे महाभारत और रामायण आदि की शूटिंग की जाती थी। इतिहास के अनुसार यहां स्थित दहानू किले को एक बार जेल के रूप में इस्‍तेमाल किया जा चुका है।
यहां आने के लिए नवंम्‍बर से लेकर फरवरी के महीनों में यहां पर्यटकों की सख्‍ंया में भारी इजाफा होता है। इस दौरान यहां का तापमान १२ डिग्री सेल्सियस तक रहता है जो लाभप्रद और अच्‍छा मौसम है। यहां पर्यटक अपनी सुविधानुसार पहुंच सकते है, यातायात का हर साधन बोरदी तक पहुंचाने में पर्यटकों को ज्‍यादा कष्‍ट नही देता है। समुद्र किनारे बसा यह शहर आपकी छुट्टियों को आनंदमयी बना देगा और बिताए हुए हर पल में पर्यटक को आराम का एहसास होगा। यहां आने के बाद आपको अपनी तनाव भरी जिंदगी से दूर रहने में मदद मिलेगी। सूर्य की रोशनी में यह तट सोने की तरह चमकता है जो आपके दिल और दिमाग में खास जगह बना लेता है। कम प्रचार की वजह से पर्यटक इस जगह को कम जानते है लेकिन यकीन मानिए कि यहां आने के बाद आपको बहुत अच्‍छा लगेगा।

क्या देखें

असालवी बांध: इस बांध को मिस्‍त्र के महान पिरामिड के आकार की तरह बनाया गया है जो ११६० फुट लंबा और ७८ फुट ऊंचा है। परिवार के साथ पिकनिक मनाने की यह शानदार जगह आना कतई न भूलें।

बरहोट गुफाएं: बोरडी श‍हर से ८ किमी. दूर बरहोट हिल्‍स और बरहोट गुफाएं स्थित है। इन गुफाओं का पारसी धर्म में धार्मिक महत्‍व है। कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचने के लिए, बहादुर और शक्तिशाली पारसी पूर्वजों ने १३ साल इस गुफा में शरण ली थी। उस दौरान इन लोगों को ईरानी आग का मंदिर मिला जिसकी ज्‍वाला को ईरानशाह ज्‍चाला कहा जाता है। अविश्‍वसनीय लेकिन सच है कि आज भी यह ज्‍वाला उस मंदिर में लगातार जल रही है।

बोरडी बीच: १७ किमी. में फैला यह क्षेत्र बोरडी बीच के नाम से जाना जाता है जो कि शांत और मनोरम है। इस तट की कोई भी चीज कृत्रिम रूप से नही सजाई गई बल्कि यहां के नेचुरल व्‍यू को बाकी जगह कॉपी किया जाता है।

दहानू फोर्ट:
नदी के किनारे पर बना यह किला ३८ फुट लंबा और १० फीट मोटा है। माना जाता है कि १७३९ ई. में चिमाजी अप्‍पा राव के नेतृत्‍व में मराठाओं ने इस किले पर कब्‍जा कर लिया था। बाद में इस किले को ब्रिटिश बेसिन संधि के तहत इस जेल में परिवर्तित कर दिया गया था।

कल्पतरु बोटनिकल गॉर्डन: यह गार्डन बोरडी से १० किमी. दूर एक गांव उमरगांव में स्थित है। यहां की हरियाली आपका मन मोह लेगी। टीवी पर दिखाया जाने वाला प्रसिद्ध धारावाहिक रामायण इसी गार्डन में शूट किया गया था।

मल्लिनाथ जैन तीर्थ-कोसबाद मंदिर: जैन धर्म के अनुनायीयों का मानना है कि चौबिस तीर्थंकरों में से ये मंदिर सबसे बड़ा है और इसकी जैन धर्म में बड़ी महत्तवता है। ये मंदिर बोरदी गाँव के एक हिस्से प्रभादेवी में आता है। जैन धर्म के अनुसार मल्लिनाथ जैन तीर्थ कोसबाद मंदिर भगवान ऋषभदेव को समर्पित है। ये मंदिर जैन धर्म के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बिंदु है।

देपचारी बांध और जलाशय: यह बांध गांव की बड़ी झीलों पर बनाया गया है। इसके आसपास की हरियाली में समय बिताना आपके जीवन की यादों और स्‍वास्‍थ्‍य दोनों के लिए बेहतर होगा।

वृंदावन स्टूडियो: ४ एकड़ के क्षेत्र में फैला १९७५ में स्थापित वृन्दावन स्टूडियो बोरदी गाँव से १० किलोमीटर की दूरी पर उम्बेर गांव में स्थित है। साथ ही यहाँ कई प्रमुख और लोकप्रिय धारावाहिकों की शूटिंग हो चुकी है जिनमें रामायण और महाभारत प्रमुख है।-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इतिहास के अनछुए किस्से बताती है  पाटण की 'रानी की बाव’ 




१०-११वीं सदी में गुजरात की प्राचीन राजधानी रही, पाटण में स्थित ‘रानी की वाव’ प्राचीन वास्त ुकला की एक बेजोड़ निशानी है, जिसकी तारीफ़ को शब्दों में बांधा नही जा सकता। पाटण को पहले 'अन्हिलपुर' के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी हुआ करती थी। गुजरात के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक होने के साथ-साथ रानी की वाव में अपने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कई सारी दिलचस्प चीजें हैं। इस खूबसूरत बावली की वास्तुकला और ऐतिहासिक प्रासंगिकता निश्चित तौर पर सराहनीय हैं। सरस्वती नदी के तट पर पाटण में स्थापित इस खूबसूरत कला से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें भी हैं, जो इसके आकर्षण को और निखारती हैं। अगर इस दीवाली आप गुजरात की यात्रा पर जाने की योजना बना रहे हैं तो इस ऐतिहासिक खूबसूरती का दीदार करना मत भूलियेगा। आइये जानते हैं रानी की वाव से जुड़ी दिलचस्प बातों को, जिन्हें जानकर आप इस ऐतिहासिक स्मारक की यात्रा करने से अपने आपको रोक नही पाएंगे।

रानी की वाव:
एक सीढ़ीयुक्‍त कुआं, रानी की वाव का निर्माण रानी उदयामती द्वारा अपने पति राजा भीमदेव की प्‍यार भरी स्‍मृति में १०६३ में कराया गया था। राजा भीमदेव सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक थे। ज्‍यादातर सीढ़ी युक्‍त कुओं में सरस्वती नदी के जल के कारण कीचड़ भर गया है। वाव के अंदरूनी दीवारों व स्तंभों पर उकेरी ८०० से ज़्यादा मूर्तियां अभी तक सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुर मर्दिनी, कल्कि आदि अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।

रानी द्वारा कराया निर्माण: भारत में कई ऐसी स्मारकें जगह-जगह मिल जाएँगी, जिन्हें राजा ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था। इन सबसे विपरीत रानी की वाव सबसे अलग और अद्वितीय है क्योंकि इसे वर्ष १०६३ में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की याद में उनकी पत्नी रानी उदयामति द्वारा बनवाया गया था।

बावली की वास्तुकला: बावली को उल्टे मंदिर की तरह बनाया गया है, जिसमें सात स्तरों में सीढ़ियां निचले स्तर तक बनी हुई हैं। बावली के हर स्तर में खूबसूरत नक्काशियां की गई हैं और कई पौराणिक और धार्मिक चित्रों को उकेरा गया है। यह वाव ६४ मीटर लंबा, २० मीटर चौड़ा तथा २७ मीटर गहरा है। वाव की खूबसूरत शैलियाँ सोलंकी वंश की कला में समृद्धि को बखूबी दर्शाती है।

सिद्धपुर सुरंग: हर स्मारक का एक रहस्य होता है, उसी तरह रानी की वाव का भी है। बावली के सबसे निचले चरण की सबसे अंतिम सीढ़ी के नीचे एक गेट है जो ३० मीटर लंबे सुरंग की ओर ले जाती है और यह सुरंग सिद्धपुर गांव में जाकर खुलता है, जो पाटण के नज़दीक ही स्थित है।

औषधीय उपयोग: ऐसा माना जाता है कि ५ दशक पहले इस बावली में औषधीय पौधे हुआ करते थे और इनके साथ यहाँ जमे पानी को मौसमी बुखार और अन्य बिमारियों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता था।

विश्व विरासत स्थल: जून २०१४ को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया, जो यूनेस्को की सूचि में शामिल दुनिया की सबसे पहली बावली बनी। इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित रखा गया है।

पाटण में अन्य आकर्षण:

पंचसारा पाश्र्वनाथ जैन मंदिर: पाटन में सैंकड़ों जैन मंदिर हैं क्‍योंकि सोलंकी काल को जैनियों के केंद्र का काल माना जाता है। उन मुख्य मंदिरों में से एक पंचसारा पाश्र्वनाथ जैन देरासर है। पाटन में कई जैन मंदिर हैं, जिनमें सफेद संगमरमर का फर्श और पत्‍थर की नक्‍काशी है। इससे पूर्व जैन मंदिर लकड़ी से बनाया गया था। कहा जाता है कि एक बार किसी ने देखा कि मंदिर के अंदर एक चूहा मुंह में एक जलती हुई मोमबत्ती लेकर चल रहा है। माना जाता है कि इसी के बाद से मंदिरों का निर्माण लकड़ी के बजाय पत्थर से किया जाने लगा। कहा जाता है कि पाटण के पुन: उद्धार के समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था लेकिन वही प्राचीन प्रतिमा अभी भी विधमान है। पाटण के ज्ञान भण्डार भी विख्यात है। पाटण अपनी शूरता, सत्यता, पवित्रता व साहसिकता सहित साहित्य, कला व संस्कृति का खजाना है।

सहस्रलिंग तालाव: सहस्रलिंग तालाब, एक जलाशय है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'एक हजार लिंगों की झील'। इसका निर्माण दुर्लभ सरोवर नाम की झील पर १०८४ में सिद्धराज जयसिंह ने करवाया था। इस झील पर तीन बार हमला किया गया था, फिर भी अपने कुछ हिस्से को अभी तक बरकरार रखने में सफल रही है। जलाशय का निर्माण सरस्वती नदी से पानी लाने के लिये किया गया था। इसमें प्राकृतिक रूप से छानने की प्रणाली अंतरनिहित है। खंभों पर बने प्‍लेटफॉर्म अभी भी झील का एक आभासी दृश्‍य प्रदान करता है। जलाशय में कई देवताओं की मूर्तियां हैं।

कैसे पहुँचें पाटन: गांधीनगर से, मेहसाणा के लिए इंटरसिटी बसें उपलब्ध हैं, जहां से भारत में अन्य स्थानों के लिए बसें उपलब्ध हैं।

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