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HEALTH

सर्दियों में रखें सेहत का ख्याल

सर्दी का मौसम दस्तक दे चुका है। इन दिनों में गिरते तापमान व वातावरण में मौजूद वैक्टीरिया/वायरस संक्रमण पैदा कर सकते हैं। सर्दियों के मौसम में अमूमन आलस आना एक कॉमन समस्या बन जाती है। हर चौथा व्यक्ति कहता है कि सुस्ती लग रही है, थकान सी महसूस हो रही है लेकिन ये लक्षण बडी बीमारी का रूप ले सकते हैं। बेहतर यही होगा कि शरीर का चुस्त दुरूस्त बनाए रखा जाए, जिससे थकान हावी न होने पाए। दरअसल सर्दियों में दिन छोटा और रात लंबी होने लगती है। देर तक सोने से सोने और जगने के बीच बैलेंस बिगड जाता है। सिर भारी रहने और नींद आने की समस्या बढ जाती है। तमाम लोगों को शाम होते ही सो जाने का मन करता है। तनाव या चिंता हम पर हावी होने लगती है। ये सारे लक्षण किसी नई बीमारी को जन्म दे सकते हैं। ऎसे में जरूरी है कि इस मौसम में एनर्जी बनाए रखें| सक्रिय रहें तो थकान खुद ब खुद छूमन्तर हो जाएगी। सर्दियों में प्राकृतिक रोशनी कम मिलती है, इससे ब्रेन में नींद वाला हार्मोन यानी मेलैटोनिन हार्मोन बनने लगता है। दूसरे इस मौसम में खाने-पीने की सक्रियता बढ जाती है और बाहर की ऎक्टिविटी घट जाती है। वजन बढने के साथ आलस हावी हो जाता है। यह कंडीशन स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नही है। वैसे भी ठंड का मौसम कई तरह की बीमारी लेकर आता है। इस दौरान वेट बढने, वायरल थायराइड के सही से काम न करने, ह्वदय-रोग, शुगर की समस्या, पेट या छाती के संक्रमण, तनाव, चिंता आदि के लक्षण बढ जाते हैं।

· शरीर में एनर्जी कम ना होने दें|

· इस मौसम में एक्सर्साइज जरूरी है।

· शरीर में मिनरल की कमी व पोषक तत्व की कमी नहीं होनी चाहिए।

पानी की बोतल साथ रखें।

· फल और सब्जी के साथ शरीर की ऊर्जा बनाए रखें। आयरनयुक्त सब्जियों व फलों का सेवन करें।

· वेट न बढने दें। तनाव आदि को हावी न होने दें।

· एनर्जी ड्रिंक आदि परमानेंट साल्यूशन नहीं है, यह थोडी देर के लिए ही एनर्जी देसकता है। साथ ही डॉक्टर से पूछकर ही विटामिन आदि लें।


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साइटिका के दर्द से हैं परेशान तो इन नुस्खों से मिलेगा आराम

साइटिका और कमरदर्द पूरे दिन के कार्यकलापों को बाधित कर देता है। साइटिका क्या है? साइटिका कमर और पीठ के निचले हिस्से में होने वाला कष्टकारक दर्द है, जो कमर से होता हुआ नीचे पैरों तक चला जाता है। साइटिका के दर्द से पीड़ित सुबह बिस्तर से उठकर चलने-फिरने में बहुत परेशानी होती है। यह एक गंभीर समस्या है जिसका ठीक प्रकार से इलाज और देखभाल न किया जाए तो यह बिमारी बहुत कष्टकर हो जाती है और पीड़ित व्यक्ति को अपने नियमित कार्यकलापों को करने में बहुत कठिनाई होती है। दवाओं के इलाज और डॉक्टर के परामर्श के साथ-साथ कुछ आसान प्रयोगों द्वारा साइटिका के दर्द का इलाज घर पर किया जा सकता है। साइटिका के लक्षणों को पहचान कर आप इनका उचित इलाज ले सकते हैं।

मुख्य कारण: साइटिका नर्व पेन कमर के नीचे के हिस्से में होने वाला दर्द है, जो पैरों को भी प्रभावित करता है| यह रीढ़ में हर्निएटेड डिस्क की वजह से होता है, इसमें दर्द नसों की जड़ों से शुरू होता है जिसका आभास पीठ के निचले हिस्से या कमर पर होता है| इसके साथ ही यह दर्द नितंबो से होता हुआ पैरों तक पहुँच जाता है और चलने-फिरने में काफी परेशानी महसूस होती है। यह दर्द अचानक शुरू होता है और कुछ समय तक के लिए बना रहता है। इस रोग के लक्षण 6 हफ्तों में दिख जाते हैं पर हर्निएशन की वजह से यह दर्द बहुत ही भयावह हो जाता है।

प्राकृतिक उपचार: साइटिका के उपचार के लिए कीरोप्रैक्टिक केयर को सबसे बेहतर और प्रभावी माना जाता है। यह थेरेपी स्पाइनल कॉर्ड को संतुलित करने का प्रयास करती है। इसके लिए इस थेरेपी के विशेषज्ञ के पास जाकर साइटिका थेरेपी लेने की ज़रूरत पड़ती है। कीरोप्रैक्टिक केयर, एक्यूपंचर, इंजेक्शन, दवा आदि के अलावा साइटिका के दर्द को कम करने के प्राकृतिक उपाय में मसाज सबसे आसान और प्रभावशाली उपाय है। कमर के नीचे के हिस्से और दर्द वाली जगह पर मसाज करने से रक्तप्रवाह तेज होता है और मसाज की वजह से ये गाँठे भी खुल जाती हैं और दर्द में राहत महसूस होती है।

घरेलू इलाज: किसी भी प्रकार के दर्द में सेंक बहुत प्रभावी है। बर्फ के द्वारा दी जाने वाली ठंडी सेंक और गरम पानी की थैली से गरम सेंक साइटिका के दर्द का प्राथमिक इलाज है।

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स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है अमरूद का रस

अमरूद एक ऐसा फल है जिसकी खूशबू से ही हम स्वस्थ महसूस करने लगते हैं। अमरूद में विटामिन, मिनरल्स, एंटी ऑक्सीडेंट के साथ फाइबर के गुण भी पाएं जाते हैं, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है। अमरूद हमारे इम्यून सिस्टम और पाचन क्रियाओं का इलाज करने में मददगार होता है। अमरूद में होने वाले एंटी ऑक्सीडेंट आपको ऊर्जावान रखने और बढ़ती उम्र के संकेतों से लड़ने में मददगार होती है।

कैंसर: अमरूद में एंटी ऑक्सिडेंट सहित विटामिन सी और क्वरसिटीन होता है। यह एंटी ऑक्सिडेंट कैंसर को बढ़ाने वाले कोशिकओं को रोकता है। अमरूद प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में भी काफी प्रभावी होता है। अमरूद के जूस में होने वाला लाइकोपीन स्तन ट्यूमर और स्तन कैंसर के विकास को रोकने में मदद करता है। अमरुद के रस में लाइकोपीन नामक एंटी ऑक्सीडेंट होता है जो शरीर के उन फ्री रैडिकल को हटाता है, जो कैंसर बढ़ाने के ज़िम्मेदार होते हैं।

शूगर लेवल:
अमरूद के जूस में उच्च फाइबर होता है जो कि शरीर में शुगर के अवशोषण को विनियमित करने के लिए काफी प्रभावी होता सकता है। अमरूद को टाइप २ मधुमेह को रोकने में भी प्रभावी माना गया है। यहाँ तक कि मधुमेह का स्तर कम करने वाली ़ज्यादा तर औषधियों में अमरुद का रस मिला होता है।

हृदय:
अमरूद में सोडियम और पोटेशियम होता है, जो शरीर में सोडियम और पोटेशियम के स्तर को संतुलित करती है, इससे हृदय सही ढंग से काम करने लगता है।

थायरॉयड: थायरॉयड ग्रंथि से कई हार्मोन और उनके अवशोषण का निर्माण होता है। अमरूद तांबे का अच्छा स्रोत है, जो शरीर में बेहतर थायरॉयड स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है और बेहतर हार्मोनल संतुलन को बढ़ावा देता है।

कब्ज और पाचन:
अगर आप पेट से जुड़ी किसी परेशानी से लंबे समय से ग्रस्त हैं तो ऐसे में आप रोजाना एक ग्लास कच्चे अमरूद का जूस का सेवन करना शुरू कर दें। जूस बनाते समय इस बात का ख्याल रखें कि आप अमरूद के किसी हिस्से को अलग ना निकालें।
साथ ही कीटाणुरोधी गुण होने के कारण अमरुद का रस फ्लू, डेंगू आदि बिमारियों और पेट व दांत के दर्द से राहत दिलाने सहित याददाशत बढ़ाने, गर्भवती महिलाओं, वजन कम करने, बेहतर त्वचा, मुंहासों आदि अनेक स्वास्थ्य लाभ में काफी अहम भूमिका निभाता है।
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आँखों के लिए हानिकारक हो सकता है कंप्यूटर पर ज्यादा काम करना

कंप्यूटर आज हमारे दैनिक जीवन का एक खास हिस्सा बन चुका है। आज हम न सिर्फ हमारे ऑफिस या काम के लिए इसका प्रयोग करते हैं बल्कि मनोरंजन और अपने करीबी लोगों से कम्यूनिकेशन बनाए रखने के लिए इसका सहारा लेते हैं। जहाँ यह उपकरण हमारे रोज़मर्रा के जीवन को सुगम बनाता है, वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं। इससे निकलने वाली किरणें या रेडिएशन हमारी आँखों को बहुत नुकसान पहुँचाती है। ये रेडिएशन आँखों में जलन और लालिमा का कारण बनते हैं। आंखों का सूखापन, जलन खुजली आदि आम समस्या हैं। इसके अलावा आँखों का धुंधलापन और सिर में दर्द भी इन्हीं किरणों के दुष्परिणामों में से कुछ एक हैं। टेक्नॉलॉजी के इस युग में कंप्यूटर से दूर रहना नामुमकिन है पर अधिक से अधिक एहतियात बरतकर हम इससे होने वाले खतरों को कम कर सकते हैं।
सही दूरी: यह सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी तरीका है जिसकी मदद से आप हानिकारक किरणों से बच सकते हैं। कम्प्युटर की स्क्रीन और आपके आँखों के बीच की दूरी आपके हाथ के बराबर से कम नही होनी चाहिए।
सही कोण: जब आप सही दूरी में बैठते हैं तो इसके साथ यह भी बहुत ज़रूरी है कि आप जिस स्थिति में बैठे हों वह स्थिति भी सही होनी चाहिए। कम्प्युटर स्क्रीन आपकी आँखों से कम से कम ४ से ५ इंच नीची होनी चाहिए ताकि आपकी आँखें स्क्रीन पर लगभग २० डिग्री के आस-पास के कोण पर देख सके।
सही रोशनी: आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि आपके आस-पास पर्याप्त रोशनी हो ताकि स्क्रीन से आने वाली लाइट का आपकी आँखों पर कम से कम प्रभाव पड़े। अंधेरे में कम्प्युटर का इस्तेमाल करने से आँखों पर ज़्यादा तनाव पड़ता है इसीलिए आप जिस जगह कम्प्युटर का प्रयोग कर रहे हैं, वहाँ ज़्यादा से ज़्यादा या भरपूर रोशनी होनी चाहिए।
ब्राइटनेस और कॉनट्रास्ट: स्क्रीन का ब्राइटनेस और कॉनट्रास्ट आँखों पर पड़ने वाले रेडिएशन के दुष्प्रभावों को कम करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अत्यधिक या कम ब्राइटनेस दोनों ही आँखों पर बुरा प्रभाव डालते हैं इसीलिए स्क्रीन के ब्राइटनेस और कॉनट्रास्ट दोनों को ही सही स्थिति में रखें ताकि आपकी आँखों पर ज़ोर न पड़े और आँखों को ज़रूरत के अनुसार आराम भी मिलता रहे। आँखों को रेडिएशन से बचाने के लिए यह उपाय बहुत ज़्यादा आवश्यक है।

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