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ABHIVYAKTI

सब है, बस तू ही नही है 


सितम देखो कि जो खोटा नही है, चलन में बस वही सिक्का नही है|
नमक ज़ख्मों पे अब मलता नही है, ये लगता है वो अब मेरा नही है|
यहाँ पर सिलसिला है आंसुओं का, दिया घर में मेरे बुझता नही है,
यही रिश्ता हमें अब भी जोड़े हुए है कि दोनों का कोई अपना नही है|

नये दिन में नये किरदार में हूँ, मेरा अपना कोई चेहरा नही है,
मेरी क्या आरज़ू है क्या बताऊँ तुझको, मेरा दिल मुझ पर भी खुलता नही है|
कभी हाथी, कभी घोड़ा बना मैं, खिलौने बिन मेरा बच्चा नही है,
मेरे हाथोँ के ज़ख्मों की बदौलत तेरी राहों में एक काँटा नही है|

सफ़र में साथ हो.. गुज़रा ज़माना, थकन का फिर पता चलता नही है,
मुझे शक है तेरी मौजूदगी पर..? तू मेरे दिल में है अब भी है या नही है?
तेरी यादों को मैं तो बिसरा दूँ, मगर ये दिल मेरी सुनता नही है|
ग़ज़ल की फ़सल हो हर बार अच्छी, ये अब हर बार तो होना नही है|
ज़रा-सा वक़्त दो रिश्ते को ‘कान्हा’, ये धागा तो बहुत उलझा नही है|

प्रखर मालवीय

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आत्‍मा पर बेबसी
जब जरूरत थी जागने की तो कहा गया,
सो जाओ अब रात बहुत हो चुकी है|
रात है कि तबसे गहराती जा रही है|

रात के अकेले पहरेदार की लाठी,
हो चुकी जर्जर, गला भर्रा गया है|
सीटी अब चीखती नही, कराहती है महज...
कवि, कलाकार, श्रेष्‍ठता की चर्चा में,
निकृष्‍टतम मुहावरों की होड जारी है|
गालियों का शब्‍दकोष रचा जा रहा,
अब इंटरनेट और अखबारों में|
जनआंदोलनों में अब भागीदारी,
लाइक, शेयर और कमेंट में सिमटी जा रही|
नींद से बोझिल पलकें आखिरी जाम,
आखिरी कमेंट और इसी बीच...
तमाम नए स्‍टेटस अपडेट,
मुंबई में पत्रकार से बलात्‍कार...
रुपया है कि लुढकता जा रहा...
एक लंपट संत का कुकर्म....
लेकिन किसी का कोई प्रमाण नही|

शर्म से झुका जा रहा मस्‍तक,
आत्‍मा पर बेबसी का कीडा कुलबुलाता है|
रात है कि गहराती जा रही,
नींद दूर तक कहीं नही,
और जगाने को अलख भी नही...

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