तीन आधारभूत स्तर ब्रह्मांड को प्रकट करते हैः भौतिक , अभौतिक और कारण संबंधी। यह सभी स्तर उत्तरोत्तर विकास के क्रम में हैं। मनुष्य अस्तित्व के भी तीन स्तर होते हैः स्थूल , सूक्ष्म और कारण। इनमें से एक चेतना को प्रदर्शित करता है। सबसे विकसित अवस्था चेतन स्तर है। मानव अस्तित्व की यह एक दोष रहित अवस्था है। लेकिन जहां अपूर्णता है वहां विकास की गुंजाईश है। अपूर्णता से पूर्णता की ओर जाने के आंदोलन को ही विकास कहते हैं। जो पूर्ण और शाश्वत है , ऐसे श्रेष्ठ या सबसे उत्तमोत्तम स्तर का विकास नहीं हो सकता है। लेकिन इसके अलावा अन्य स्तरों में विकास की गुंजाइश होती है। पांच अवयवों से मिलकर बना मानसिक स्तर वाला स्थूल शरीर ब्रह्मांड को प्रदर्शित करता है। यह जो हमारा शरीर है , वह उस ब्रह्मांड का ही छोटा रूप है , या यों कहें कि यह ब्रह्मांड का ही प्रर्दशन है। हर व्यक्ति का अधिकार है कि उस परमात्मा के ब्रह्मांडीय स्वरूप और उसके आनंद को प्राप्त करे और महसूस करे। भौतिक शरीर अपूर्ण और अस्थायी है। क्योंकि यह समय , स्थान और पहचान से बंधा है। मानव खुद को इन सब बंधनों यानी सापेक्षता से आजाद करने के लिए लगा